Wednesday 27 October, 2010

साहब का दंश

आफिस के एक बड़े साहब
मोम की गुडिया, जहर की पुडिया।
बुदापे का दर्द सालता है
अपने मूछों को हटा डालता है।
उम्र की दर से डरा यह आदमी
दूर करने अपनी अंदरूनी कमी,
सफ़ेद मुसली की जड़ मंगाता है
छोटी सी कली कोट में लगता है
हर किसी को मटुक और जुली का पाठ पढाता।


रंग बिरंगे कपड़ों में घूमते साहब की
आफिस में अलग ही शान है
हर अदा में नफासत है
खुद को कैसे साबित करें
इसका भी अच्छा ज्ञान है।
हुजूर कई पेशे की रोटी खा चुके हैं
जगह-जगह अपना हाथ आजमा चुके हैं
नहीं दल कहीं गली, प्रवचन करने लगे
अपनी वाणी से लोगों को मोहने लगे।
किसी ने कहा मीडिया में मूर्ख भरे हैं
आप यहाँ प्रवचन के फेर में पड़े हैं
आप की असल जरुरत वहां है
आप जैसा कोई दूसरा कहाँ है।
यहाँ आते ही जादू चला चला दिया
लोगों से ज्ञान का लोहा मना लिया
बाइट काटने की जरुरत पड़ी
टेप पर ही कैंची चला दिया।
बाद में कैंची का महत्व समझने लगे
गीता और कैंची साथ-साथ रखने लगे
जब किसी ने ज्ञान पर संदेह किया
कैंची चलाकर उसका पत्ता साफ कर दिया।
हुजूर की फितरत पुरानी है
पीछे भी एक लम्बी कहानी है
जहाँ जहाँ गए जलवा दिखाते रहे
जिसकी गोद में बैठे उसे मूंडा,
जिस नव पर चढ़े उसे डुबाते रहे।
हुजूर अपमान की घूंट पीते हैं
बेशर्मी की चादर में लिपटे
शानदार जिंदगी जीते हैं
मौका मिलते ही धीरे से
करैत की तरह डस लेते ।

( यह किसी एक हुजुर की कहानी नहीं है )
हर हाउस में ऐसे हुजूर पलते हैं
उनकी डर से हर आदमी
दहशत के साये में जीता है
कुछ कर दिखाने का सपना
दिल में ही मर जाता है।।


Sunday 24 October, 2010

मजबूरी

संवेदना की बातें करते करते
मेरी संवेदना कई बार मर चुकी है,
या फिर उसे बेचते बेचते
मेरी भावना भी बिक चुकी है

सड़क हादसे में घायल की तड़प
हमारे लिए खबर होती है,
हम ब्रेकिंग का इंतजार करते हैं
उसे खून की जरूरत होती है

घायल के परिजनों की नजरें
आस भरी हमारी ओर देखती हैं,
उन्हें हमारी सहायता की
तो हमें उनके विलाप की खोज होती है

हादसे से सहमा हुआ बच्चा
बाप की चुप्पी से परेशान है,
माँ कफ़न और कल की रोटी के लिए
तो हम खबरों की गिनती के लिए हलकान हैं