Sunday, 24 October 2010

मजबूरी

संवेदना की बातें करते करते
मेरी संवेदना कई बार मर चुकी है,
या फिर उसे बेचते बेचते
मेरी भावना भी बिक चुकी है

सड़क हादसे में घायल की तड़प
हमारे लिए खबर होती है,
हम ब्रेकिंग का इंतजार करते हैं
उसे खून की जरूरत होती है

घायल के परिजनों की नजरें
आस भरी हमारी ओर देखती हैं,
उन्हें हमारी सहायता की
तो हमें उनके विलाप की खोज होती है

हादसे से सहमा हुआ बच्चा
बाप की चुप्पी से परेशान है,
माँ कफ़न और कल की रोटी के लिए
तो हम खबरों की गिनती के लिए हलकान हैं




1 comment:

  1. वाह साहब वाह, आपने तो कमाल ही कर दिया

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